Monday, 12 November 2018

ज्ञानसूर्य तू इस जगत का

ज्ञानसूर्य तू इस जगत का,
भीमराव महान
भारतभू के क्रांतिसूर्य को हम करते है प्रणाम
हम करते है प्रणाम
प्रणाम ! प्रणाम ! प्रणाम !

अमृतकुंड महाड का,
खुला किया दलितोके लिये भीमराव ने
अंधःकारमय जीवन उज्ज्वल, किया ज्ञान के प्रकाश से भीमराव ने
भीमाबाई और रामजीके,
वे चौदावे रत्न महान
भारतभू के क्रांतिसूर्य को हम करते है प्रणाम
हम करते है प्रणाम

हिंदू कोड बिल सादर करके,
स्त्री हकोंकी रक्षा की
गोलमेज परिषद में  जा कर, मानवता की रक्षा की
ज्ञानसागर प्राशन करके
गुंगे को दिलायी जुबां
भारतभू के क्रांतिसूर्य को हम करते है प्रणाम
हम करते है प्रणाम

स्वतंत्रता का समानताका,
बंधुभाव और न्यायनीतीका
पंचशील का कवच बनाकर, संविधान लिखा भारत का
भारतरत्न हे भीमराव,
विश्व् के है युगपुरुष महान
भारतभू के क्रांतिसूर्य को हम करते है प्रणाम
हम करते है प्रणाम

इस धरती का कोई इन्सा
आज किसी का नही है दास
संघटना और ज्ञान मंत्र से खत्म हुआ है ये वनवास
ज्योत ---- की प्रज्वलित कर
हम सारे बन जाये (सुजाण) ......
भारतभू के क्रांतिसूर्य को हम करते है प्रणाम
हम करते है प्रणाम

शब्दरचना: सुधीर भगत
आवाज: कविता कृष्णमूर्ती

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